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कबीर नगरी दामाखेड़ा
दामाखेड़ा रायपुर के समीप लगभग 79 कि.मी. और बिलासपुर से लगभग 58 कि.मी. छत्तीसगढ़ के बलौदा बाजार जिले का एक छोटा सा गांव हैं, जिसे छत्तीसगढ़ का कबीर नगरी कहा जाता है, क्योंकि माना जाता यहां 100 वर्षों पूर्व 1903 ई. में कबीर गुरूओं द्वारा कबीर मठ की स्थापना किया गया था । यह जगह बहुत ही धार्मिक मानी जाती हैं, कहा जाता हैं, यह जगह कबीरपथियों को ही समर्पित हैं, कबीर पंथ की शुरूआत कबीर दास से हुई जिनका जन्म वाराणसी में हुआ था । एैसा माना जाता है उनके जन्म के बाद उनकी माता ने उन्हें तालाब में छोड़ दिया जहां वे नीरू नाम के जुलाहा को मिलें जिन्होने कबीर जी का पालन-पोषण किया , कबीर जी प्रमुख शिष्य मध्यप्रदेश अंतर्गत बांधवगढ़ स्थित संत धनी धर्मदास साहब थे । जिन्हें कबीर जी ने अपना संपूर्ण अध्यात्मिक ज्ञान दिया और धनी धर्मदास के दूसरे पूत्र मुक्तामणि नाम साहब को 42 पीढ़ी तक कबीर पंथ का प्रचार-प्रसार करने का आशीर्वाद प्रदान किया । इस प्रकार मुक्तामणि नाम साहब छत्तीसगढ़ के प्रथम वंशगुरू कहलाये और कोरबा के कुदूरमाल में अपनी गद्वी संभाली । दामाखेड़ा की गद्वी गुरू उग्र नाम साहब ने संभाली जो कबीर पंथ के छत्तीसगढ़ी शाखा के 11वें गुरू थे । इन्होने ही यहां कबीर मठ की स्थापना की थी । इनके बाद दामाखेड़़ा की गद्वी दयानाम साहब ने संभाली और फिर ग्रिन्ध मुनि साहब ने यहां कबीर पंथ की गद्वी संभाली । यहां आपको कबीर मठ और समाधि मंदिर देखने को मिल जायेगा जिसे देखने के लिए यहां दूर-दूर से लोग आते हैं।
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यहां दामाखेड़ा में माघी पूर्णिमा और कबीर जयंती में लोगो की काफी भीड़ होती हैं, खासकर के माघी पूर्णिमा में यहां मेले का आयोजन होता हैं, जिसमें संत समागम और चौका आरती होती हैं, कबीर पंथ में चौका आरती का महत्व होता हैं, उस समय यहां का माहौल देखने वाला होता हैं, यहां लाखो की संख्या में श्रद्वालु आते हैं, और कबीर पंथ के वर्तमान गुरू प्रकाशमुनि साहब यहां उपदेश देने आते हैं, बहुत ही खुबसुरत माहौल होता हैं, समाधि मंदिर में भी आपको कबीर पंथी गुरूओं और गुरूमांओं की समाधि स्थली देखने को मिलती हैं, यहां की दिवारों पर कबीर दास जी के दोहो और चौपाई का बड़े ही सुंदर रूप मे चिंत्राकन किया गया हैं,
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कबीर पंथी गुरूओं की छत्तीसगढ़ी शाखा की शुरूआत मुक्तामणि नाम साहब से हुई थी इनकी गद्वी कुदूरमाल में हैं, इनके बाद 42 पीढि़यो तक गुरूवाई करने की भविष्यवाणी करते हुए नामों की घोषणा की गई थी । 1. सुदर्शन नाम साहब, 2. कुलपति नाम साहब, 3. प्रमोध गुरू नाम साहब, 4. केवल नाम साहब, 5. अमोल नाम साहब, 6. सूरत सनेही नाम साहब, 7. हकनाम साहब, 8. पाक नाम साहब, 9. प्रकट नाम साहब, 10. धीरज नाम साहब, 11. उग्र नाम साहब, 12. दया नाम साहब, 13. गृन्धमुनि नाम साहब, 14. प्रकाशमुनि नाम साहब, 15. उदितमुनि नाम साहब, 16. मुकुंद मुनि नाम साहब, 17. अर्थ नाम साहब, 18. उदय नाम साहब, 19. ज्ञाननाम साहब, 20. हंसमणि नाम साहब, 21. सुक़ृतनाम साहब, 22. अग्रमणि नाम साहब, 23. रस नाम साहब, 24. गंगमणि नमा साहब, 25. पारस नाम साहब, 26. जाग्रत नाम साहब, 27. भृंगमणि नाम साहब, 28. अकह नाम साहब, 29. कंठमणि नाम साहब, 30. संतोषमणि नाम साहब, 31. चात्रिक नाम साहब, 32. आदि नाम साहब, 33. नेह नाम साहब, 34. अज्र नमा साहब, 35. महा नाम साहब, 36. निज नाम साहब, 37. साहेब नाम साहब, 38. उदय नाम साहब, 39. करूणा नाम साहब, 40. उर्ध्व नाम साहब, 41. दीर्घ नाम साहब, 42. महामणि नाम साहब ।
कबीर से जुड़ी कहानियां
कबीर दास जी से जुड़ी हुई काफी सारी बातें लोगो के बीच में प्रसिद्ध हैं, उन्ही में से कुछ किवंदितियां आज मैं आपसे साझा करना चाहता हूं । ये सारी किवंदितिया आपको दामाखेड़ा के समाधि मंदिर मे देखने को मिल जायेंगी जो निम्न हैं ।
- अंतर्ध्यान होने के बाद भी सद्गुरू समय-समय पर भ्क्तों को संत के भेष में दर्शन दिया करते हैं, संत गरीब दास जब पॉंच वर्ष के थे, तो अन्य बच्चों के साथ जंगल में गाय चराने जाते थे । एक दिन गरीब दास गायों को खुला छोड़कर सदृगुरू कबीर के भजन गाने में मगन हो गये । उनकी लगन देखकर सदृगुरू संत स्वरूप में दर्शन दिये । दिग्दर्शन पाते ही गरीब दास को परम ज्ञान का बोध हुआ । गरीब दास बाद में प्रसिद्ध संत हुये । उनकी कृतियों में अधिकांशत: सदृगुरू कबीर की ही वाणी पाये जाते हैं ।
एैसा ही कबीर दास जी से जुड़ा एक और किस्सा हैं
- सदृगुरू कबीर संसार के प्रथम महापुरूष हैं, जिन्हें गुरू और पीर की उपाधि एक साथ प्राप्त हुई । वे ऐसे लोक नायक थे, जिन्होने तत्कालिक विपरित परिस्थितियों में भी अपने युग का अत्थान किया । उनके युग में धर्मान्धता, असहिष्णुता, सामाजिक-असमानता, अमानवीय व्यवहार आदि का बोलबाला था । सदृगुरू कबीर के अनुसार - धर्म, सम्प्रदाय, रंग, रूप, वर्ण, आदेशिकता आदि खेमों में बंटी हुई मानवता का एकीकरण आवश्यक था । वे धर्म, समाज और जीवन मे सर्वत्र ही समता का स्थापना करना चाहते थे । उनहोने हमेशा सत्याचार, सारग्रहिता, समदर्शिता, शील, दया, क्षमा, संतोष, परोपकार, अहिंसा आदि को आचरण में ढालने का आदेश दिया तथा इन्हीं ठोस सिद्धांतो के आधार पर एक ऐसे पंथ का निर्माण किया जिस पर हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई आदि धर्मावलम्बी निर्विघ्न चल सकें ।
My Experience
दोस्तो मेरा इस दामाखेड़ा कबीर नगर घुमने का अनुभव बहुत ही अच्छा था । यह छत्तीसगढ़ के बलौदा बाजार का एक बहुत ही खुबसुतर गांव हैं, जहां आपको धर्म, आध्यात्म से जुड़ने का मौका मिलेगा कबीर गुरूओं की समाधि स्थली, कबीर मठ और यहां समाधि मंदिर सब कुछ बहुत ही सुंदर हैं, और यहां का माघी पुन्नी में लगने वाला दामाखेड़ा का मेला आनंद और हर्षोल्लास से भरपूर होता हैं, अगर आप कभी इस कबीर धर्म नगर दामाखेड़ा में आये हैं, तो नीचे कमेंट में हमसे अपना अनुभव जरूर साझा करें । साथ ही इससे जुड़ा मेरा युट्युब वीडियों नीचे दिया हुआ हैं, उसे भी जरूर देखिऐगा ।
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