kosgai mandir korba | कोसगाई मंदिर कोरबा | कोसगाई मंदिर कोरबा का इतिहास | kosgai mandir korba video | kosgai mandir
kosgai mandir korba
कोरबा जिले के पोड़ीखोहा नामक गांव में विराजमान है, मां कोसगाई । यह मंदिर धार्मिक और ऐतिहासिक मान्यताओं के कारण पुरे कोरबा जिले और छत्तीसगढ़ में प्रसिद्ध है, यह जगह नवरात्रि के समय श्रद्धालुओं से भर जाती है, जो माता के दर्शन के लिए आते हैं, मंदिर बीहड़ जंगलों के बीच पहाड़ी पर स्थित है, और मंदिर कि उंचाई मुख्य मार्ग बस्ती से लगभग 200 फिट है, मंदिर तक पहुंचने के लिए जो मार्ग उपलब्ध है, वह काफी खराब हैं, इसके बावजूद माता की श्रद्धा शक्ति भक्ति देखने के लिए लोग यहां आते रहते हें।
कोसगाई मंदिर कोरबा
यह कोसगाई माता का चमत्कारी मंदिर कोरबा जिला मुख्यालय से लगभग 30 कि.मी. छुरी से लगभग 40 कि.मी. और बिलासपुर जिले से लगभग 120 कि.मी. की दूरी पर स्थित हैं, यहां पहुंचने के लिए सबसे अच्छा मार्ग पोड़ी-उपरोड़ा से होते हुए बांगो डेम के मार्ग से होकर आना हैं, मंदिर से जुड़ी कई सारी बातें लोगो के बीच प्रसिद्ध है, माना जाता है कि कोसगाई दाई के इस मदिर मे कभी लाल कपड़ा नहीं चढ़ाया जाता बल्कि सफेद कपड़ा चढ़ाया जाता है क्योंकि माता कोसगाई को शांति का प्रतीक माना जाता है, साथ ही मंदिर के उपरी हिस्से में छत नहीं है क्योकि एैसा माना जाता हैं, कि माता समय-समय पर अपने मुर्ति रूप को छोड़कर चली जाती है और नवरात्रि के समय वापस आ जाती है।
कोसगाई मंदिर कोरबा का इतिहास
कोसगई माता का यह मंदिर कोसगईगढ़ में स्थित है, जो छत्तीसगढ़ के 36 गढ़ो में से एक हैं। साथ ही यह जगह ऐतिहासिक दृष्टि से भी काफी महत्वपूर्ण हैं, क्योकि यहां प्राचीन किले के अवशेष प्राप्त हुए हैं, कहा जाता है यहां कभी किला हुआ करता था जिसे कोसगईगढ़ दुर्ग के नाम से जाना जाता है, इस किले का निर्माण लगभग 12 से 16 शताब्दी के बीच करवाया गया था। इससे जुड़ी एक किवंदती बहुत प्रसिद्ध है जो मैं आपके साथ साझा करना चाहता हूं । कहा जाता है कोसगईगढ़ दुर्ग को बनाने के लिए भीमसेन को कहा गया था । उस समय 6 महीने के लिए दिन और 6 महीने के लिए रात हुआ करती है, पर सुबह होते तक यह किला बन नहीं पाया जिसके कारण यह किला और पहाड़ गिरने लगे जिसे भीमसेन ने अपने कंधे पर उठा लिया । आप जब यहां जायेंगे तो इसके प्रतीक के रूप में आपको यहां भीमसेन की एक मुर्ति भी देखने को मिलेगी ।
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कोसगई माता के इस खुबसुरत प्रकृति से घिरे हुए एवं पहाड़ी के उपर स्थित इस मंदिर का निर्माण लगभग 500 वर्षो पूर्व करवाया गया था । तब से ही श्रद्धालुओं का आना जाना यहां लगा है, कहा जाता है कभी रतनपुर के राजा बाहरेन्द्र ने छुरी जमींदारी में अपने खजाने को कोसगई गढ़ के इस पहाड़ में छिपा दिया था। पर उनका खजाना नहीं मिल पाया । मंदिर के बारे में काफी सारी धार्मिक मान्यताएं भी हैं, इस मंदिर को 52 शक्तिपीठ में से एक माना जाता है, इससे जुड़ी एक कहानी भी आपको मैं बताना चाहुंगा कि कैसे शक्तिपीठों का जन्म हुआ था।
इस कहानी के अनुसार राजा दक्ष के द्वारा यज्ञ का आयोजन किया गया था परन्तु इस यज्ञ में शिव जी को न्यौता नहीं भेजा गया माता सती उनसे जिद करके यज्ञ में गयी और वहां शिव जी के अपमान को सहन न कर सकी फिर उन्होने अग्नि कुड में कुदकर अपनी जान दे दी । जब शिव जी को इस बात का पता चला तो उन्होने वीर भद्र नामक गण को भेजकर राजा दक्ष का यक्ष विध्वंस कर दिया । और फिर सती के अधजले शरीर को लेकर विचरण करने लगे उनके इस वैराग्य रूप को देखकर देवताओं ने भगवान विष्णु से आग्रह किया और विष्णु जी ने अपने चक्र से सती के शरीर के 52 टुकड़े कर दिये । जो अलग-अलग स्थानो पर गिरे और कहा जाता है इसमें से एक टुकड़ा कोसगईगढ़ के इस पहाड़ पर भी गिरा था।
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दोस्तो मैं इस कोसगईगढ़ के खुबसुरत मंदिर का दर्शन हर नवरात्रि में जरूर करता हुं। परन्तु अभी के समय में यह मंदिर काफी लोगो के व्यस्त जीवन से काफी दुर सा हो गया है । मंदिर बीहड़ जंगलो के बीच पहाड़ी पर जरूर स्थित है । पर पर्यटकों का यहां आना बहुत कम हो गया है । मैं आपसे यह बात जरूर कहुंगा अगर आप कोरबा जिले या छत्तीसगढ़ से हैं । तो आप इस मंदिर में एक बार जरूर आये और माता के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त करें। नीचे इस मंदिर से जुड़ा मेरा युटृयुब वीडियो दिया हुआ है उसे भी जरूर देखें धन्यवाद।
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