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Musa shahid dargah ratanpur bilaspur chhattisgarh | मूसा शहीद दरगाह जुना शहर रतनपुर बिलासपुर छत्‍तीसगढ़ | बाबा मूसा शहीद दरगाह रतनपुर का सच | रतनपुर के जुना शहर का अद्भुत छिपा हुआ दरगाह

Musa shahid dargah ratanpur bilaspur chhattisgarh


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दोस्‍तो आज का यह ब्‍लाग पोस्‍ट रतनपुर के जुना शहर मे स्थित एक बहुत ही खुबसुरत मजार के बारे मे हैं, रतनपुर वैसे तो मंदिरो की नगरी कही जाती हैं, और यह जगह बहुत सारे मंदिरो और पर्यटन स्‍थलों के कारण प्रसिद्ध हैं, पर साथ ही यहां का यह मजार भी प्रसिद्ध हें, यह इतिहास से जुड़ा एक टुकड़ा हैं, जो यहां पर लोगो के लिए आर्कषण केन्‍द्र बना हुआ हैं, इससे जुड़ी काफी कहानियां भी हैं, जो आज हम जानेंगे ।

मूसा शहीद दरगाह जुना शहर रतनपुर बिलासपुर छत्‍तीसगढ़


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रतनपुर की पुरानी बस्‍ती जुना शहर में स्थित यह मजार बिलासपुर शहर से लगभग 26 कि.मी. दूर और रतनपुर से लगभग 4 कि.मी. दूर कोटा मार्ग में स्थित हैं, यहां लोग दूर-दूर से बाबा मूसा खां शहीद रहमतुल्‍लाह अलैह की मजार को देखने आते बाबा से दुआऐं लेने कहते हैं, यहां आने वाले लोगो की मुराद बाबा मूसा शहीद पुरी करते हैं, मजार एक छोटी सी पहाड़ी जैसी जगह में स्थित हैं, बाबा मूसा शहीद मजार के साथ यहां गंज शहीदा या बाबा मूसा खां के 35 वफादार सिपाहियो के मजार भी आपको देखने को मिलेंगे, यहां सालाना उर्स का आयोजन भी होता हैं, जो गर्मी के समय आयोजित किया जाता हैं, जिसमें काफी संख्‍या में लोग आते हैं, साथ ही इसमें भण्‍डारें का आयोजन भी होता हैं, जिसमें हर कोई बाबा मूसा शहीद के दरबार में आ सकता हैं।

बाबा मूसा शहीद दरगाह रतनपुर का सच


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वैसे तो दोस्‍तो इस जगह से जुड़ी बहुत सारी बातें प्रसिद्ध हैं, और लोग इस जगह से जुड़ी काफी सारी कहानियां बताते हैं, मगर इस जगह से जुड़ी एक कहानी हैं, जो मैं आपको बताना चाहुंगा । कहा जाता हैं, बाबा मूसा खां रहमतुल्‍लाह अलैह का भारत आगमन सबसे पहले 1186 ई. में एक सिपेहसालार के रूप में हुआ था। उन्‍हें यहां इस्‍लाम धर्म के प्रसार के लिए भेजा गया था। और वे इसके लिए छत्‍तीसगढ़ भी आये जहां आरंग में उनका संघर्ष वहां के तत्‍कालीन राजा से हुआ जिनमें बाबा मूसा शहीद की मृत्‍यु हो गयी , पर आश्‍चय की बात तो यह है, कि आरंग में सिर्फ उनका सिर रह गया और उनका धड़ उनका घोड़ा अपने साथ रतनपुर के जुना शहर की इस पहाड़ी पर ले आया कहा जाता है, उनके घोड़े को 79 तीर लगे थे । जिनसे उनके घोड़े की मृत्‍यु भी यहां हो गयी और उनके घोड़े का मजार भी आपको यहां देखने को मिल जायेगा, उसके बाद से ही उनकी स्‍मृति मे आरंग और रतनपुर के जुना शहर दोनो जगहों में बाबा मूसा शहीद का दरगाह बनवाया गया । बाबा मूसा शहीद को शहादत 9 अप्रैल 1186 को मिली, ।

रतनपुर के जुना शहर का अद्भुत छिपा हुआ दरगाह 


मूसा_शहीद_दरगाह

यह मजार लगभग 850 वर्षो पूर्व बनवाया गया था। मजार किसने बनवाया इसका कोई दस्‍तावेजी या ऐतिहासिक प्रमाण नहीं मिलता हैं, पर आज यहां हर धर्म, रूप, रंग के लोग आते हैं, और इस दरगाह के दरवाजे हर किसी के लिए खुले होते हैं, यह धार्मिक स्‍थल होने के साथ-साथ एक अच्‍छा पर्यटन स्‍थल भी हैं, और हर साल उर्स के समय यहां का माहौल मेले के जैसा होता हैं, 

My Experience


दोस्‍तो मेरा इस दरगाह के वीजिट का अनुभव काफी अच्‍छा था। यहां का नजारा और बाबा मूसा शहीद के मजार में पहुंचने के बाद जो अनुभव होता हैं, वह शब्‍दो में बताया नहीं जा सकता हैं, यह जानने के लिए आपको यहां स्‍वयं आना होगा । यहां से मुझे काफी सारी जानकारी और अनुभव मिला । आशा करता हुं कि आपके लिए भी यह जगह उतनी ही यादगार हो जिनती की मेरे लिए इसी ख्‍याल के साथ आप से विदा लेता हुं । और हर बार की तरह इस जगह से जुड़ा मेरा युट्युब वीडियो नीचे दिया हुआ उसे भी जरूर देखिएगा धन्‍यवाद।





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