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shiva mandir deobaloda | शिव मंदिर देवबालोदा दुर्ग ,छत्‍तीसगढ़ | शिव मंदिर देवबालोदा की कहानियां | shiv mandir deobaloda durg , chhattisgarh

shiva mandir deobaloda


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देवबलोदा का खुबसुरत मंदिर छत्‍तीसगढ़ के अदृभुत प्राचीन शिव मंदिरों मे से एक हैं। इस मंदिर का निर्माण कल्‍चुरियों द्वारा करवाया गया था । यह मंदिर भारतीय पुरातत्‍व सर्वेक्षण द्वारा संरक्षित स्‍मारक हैं। तो आइए जानते हैं इस मंदिर के इतिहास और इस मंदिर से जुड़ी कुछ रोचक कहानियों के बारे में ।

शिव मंदिर देवबालोदा दुर्ग ,छत्‍तीसगढ़ 


shiv_mandir_deobaloda_durg_chhattisgarh
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भगवान शिव को समर्पित इस मंदिर का निर्माण कल्‍चुरी राजाओं द्वारा 13 वीं शताब्‍दी में किया गया था।
बलुआ प्रस्‍तर से निर्मित इस पूर्वीभिमुखी मंदिर में गर्भगृह एवं स्‍तंभों पर आधारित नवरंग मण्‍डप विद्वमान है। शिखर विलुप्‍त हो चुका है जो संभवत: नागर शैली का रहा होगा । गर्भगृह के भीतर शिवलिंग स्‍थापित है । इसके प्रवेश द्वार पर शैव द्वारपाल एवं अनुचरों से अंकित अत्‍यंत सज्‍जापूर्ण द्वार शाखाएं लगी है । ललाट बिम्‍ब पर मनोहरी गणेश का अंकन है । नवरंग मण्‍डप के स्‍तंभों पर भैरव, विष्‍णु, महिषासुरमर्दिनी त्रिपुरान्‍तशिव वेणुगोपाल के अतिरिक्‍त कीर्तिमुख, संगीत मंडली एवं नृत्‍यरत भावभंगिमाओं का अंकन प्राप्‍त होता है 
अधिष्‍ठान के बाह्य भाग की पट्टिका पर जगधर, अश्‍वथ्‍र एवं नरथर का सुरूचिपूर्ण अंकन प्राप्‍त होता है । भित्ति पर दो भागो में विभक्‍त अंकन प्राप्‍त होता है । जिनमें त्रिपुराकान्‍तकशिव, गजान्‍तकशिव, नृसिंह, नरवराह, पार्वती, राधाकृष्‍ण, गणेश, महिषासुरमर्दिनी, लक्ष्‍मी त्रिविक्रम, वेणुगोपाल, केशिवध इत्‍यादि सम्मिलित हैं।

शिव मंदिर देवबालोदा की कहानियां


शिव_मंदिर_देवबालोदा_की_कहानियां
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shiva_temple_deobaloda_kund
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मंदिर के बारे एक कहानी बहुत प्रचलित हैं इस मंदिर का जो शिल्‍पकार था उसके बारे में कहा जाता हैं कि उसने यहां छलांग लगाई थीं । कहते हैं जब शिल्‍पकार मंदिर को बना रहा था तब वह इतना लीन हो चुका था कि उसे अपने कपड़े तक की होश नहीं थी । दिन रात काम करते-करते वह नग्‍न अवस्‍था में पहुंच चुका था । उस कलाकार के लिए एक दिन पत्‍नी की जगह बहन भोजन लेकर आई । जब शिल्‍पी ने अपनी बहन को सामने देखा तो दोनों की शर्मिंदा हो गए । 
शिल्‍पी ने खुद को छुपाने के लिए मंदिर के उपर से ही कुंड में छलांग लगा दी । बहन ने देखा कि भाईकुंड में कूद गया तो इस गम में वह बगल के तालाब मे कूद गई । आज भी कुंड और तालाब दोनों मौजूद है और तालाब का नाम भी करसा तालाब पड़ गया क्‍योंकि जब वह अपने भाई के लिए भोजन लेकर आई थी तो भोजन के साथ सिर पर पानी का कलश भी था। 
तालाब के बीचोबीच कलशनुमा पत्‍थर आज भी मौजुद है। कुंड के बारे में लोगो का कहना है कि इस कुंड के अंदर एक गुप्‍त सुरंग है जो सीधे आरंग के मंदिर के पास निकलती है। वह शिल्‍पी जब इस कुंड में कूदा तब उसे वह सुरंग मिली और उसके सहारे वह सीधे आरंग पहुंच गया।
बताया जाता है कि आरंग में पहुंचकर वह पत्‍थर का हो गया और आज भी वह पत्‍थर की प्रतिमा वहां मौजूद है। इस कुंड में 23 सीढि़या है और उसके बाद दो कुंए है। इसमें से एक पाताल तोड़ कुंआ है जिससे लगातार पानी निकलता है।

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शिव_मंदिर_देवबालोदा_दुर्ग_छत्‍तीसगढ़
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अब सबसे जरूरी बात की यह मंदिर कहां पर स्थित हैं और आप यहां कैसे पहुंच सकते हैं। तो यह मंदिर दुर्ग जिले के भिलाई शहर के मार्शलिंग यार्ड में स्थित है । बिलासपुर शहर से लगभग 131 कि.मी. और रायपुर शहर से लगभग 20 कि.मी. की दूरी पर स्थित हैं। आप यहां दुर्ग से ऑटो रिक्‍शा द्वारा और रायपूर व बिलासपुर से बस द्वारा भी आ सकते हैं। यह एक छत्‍तीसगढ़ का बहुत ही प्रसिद्ध पर्यटन स्‍थल हैं। साथ ही इसका इतिहास से जुड़ा होना इसे और भी महत्‍वपूर्ण और अद्भुत बनाता है। 

My experience


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दोस्‍तों मैं इस खुबसुरत से शिव मंदिर में एक बार आया हुं महाशिवरात्रि के समय तब यहां मेला भी लगता हैं और मेले के समय यहां का माहौल देखने में बड़ा ही सुंदर होता हैं। वैसे आप यहां कभी भी आ सकते हैं। और इस खुबसुरत से पर्यटन स्‍थल मे अपने फैमिली और दोस्‍तों के साथ समय व्‍यतीत कर सकते हैं। तो अगर आप यहां पहले आये हैं तो हमसे अपना अनुभव जरूर साझा करें और अगर आने वाले हैं तो जरूर बताइयेगा के आपका अनुभव कैसा रहा ।

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